जो जानने योग्य है उसे कहता हूँ। जिसे जानने से अमरता प्राप्त होती है। अनादि परम ब्रह्म न तो सत् कहा गया है न ही असत् । सब ओर हाथों, पैरों, आखों, सिरों, मुखों और कानों वाला वह, संसार में सब जगह सब कुछ व्याप्त करके स्थित है। वह इंद्रियों से रहित है परन्तु सब इंद्रियों और गुणों का आभास करता है। अपेक्षा रहित है परन्तु सभी का धारक व पोषक है। गुणों से रहित है परन्तु गुणों को भोगने वाला है।
सभी प्राणियों के बाहर भी है और भीतर भी । अचल भी है और चल भी रहा है। वह दूर से दूर तक भी है और पास से पास में भी है। सूक्ष्म होने के कारण जानने में नहीं आता । वह न बंटने वाला होते हुए भी प्राणियों में बंट कर स्थित है । जानने योग्य, सभी प्राणियों को पैदा करने वाला, भरता-पोषक होकर भी वह सबको ग्रस लेने वाला है। उसे अंधकार से परे सब प्रकाशों का प्रकाश कहा गया है। वही ज्ञान है, जानने योग्य है, सारे ज्ञान का अंतिम पड़ाव भी है और वह सभी के हृदय में विराजमान है। 7 यह क्षेत्र, ज्ञान और जानने योग्य को संक्षेप में कहा। इसे जानकर मेरा भक्त मेरे भाव को प्राप्त हो जाता है।