शरीर क्या है

भगवान बोले, अर्जुन ! इस शरीर को क्षेत्र कहते हैं। जो इसे जान रहा है तत्वज्ञानी उसे क्षेत्रज्ञ कहते हैं। सब क्षेत्रों का क्षेत्रज्ञ तू मुझे ही समझ और जो क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का ज्ञान है, मैं मानता हूँ कि वही ज्ञान है।जो यह क्षेत्र है और जैसा यह है, जिन विकारों वाला है, जिससे यह होता है और जो उसके प्रभाव हैं, वह सब संक्षेप में मुझ से सुन। ऋषियों ने बहुत प्रकार के छंदों से गाकर और ब्रह्म सूत्रों में तर्कपूर्ण कारणों से भी उसे सुनिश्चित किया है। मूल प्रकृति, बुद्धि, अहंकार, पंच तत्व, दस इंद्रियां और इन में पाँच ज्ञान इंद्रियों के विषयों में विचरने वाला एक मन है।' इच्छा, द्वेष, सुख, दुःख के प्रहारों के साथ, चेतना को धारण किये हुए क्षेत्र को, ऐसे संक्षेप में कहा गया है "